Tuesday 26 January 2016

कविता हाइकू : बचपन और कागज़ी नाँव




कविता का परिचय
यह कविता हायकू की विधा में है.. इसमें एक लाइन में पाँच  …
दूसरी  लाइन में सात अक्षर ..और इसी प्रकार पाँच और सात..  
अक्षर के क्रम में कविता चलती रहती है  ..
प्रस्तुत कविता बचपन की   यादों पर आधारित  है  जब पानी
बरसने पर हम कागज़ की  नाँव बनाते ..तैराते  और बहुत खुश
होते थे…..
कविता : बचपन और कागज़ी नाँव

तैराते  हम
बना कागजी नाँव
बरसे   मेघ
रिमझिम जोर से                                                                                             
भरती नाली
उफनती वेग से
नावें हमारी
कुछ दूर चलतीं
फिर उलट
पलट कर डूब
जातीं जल में
हम देखें हो खुश
किसकी नाँव
डूबी किसकी तैरी
हार जीत का
फैसला था नाँव पे
जीत हार में
बिताया बचपन
कागजी नाँव
देती  मज़ा जीत का
खुशियों  भरी
या कड़ुई हार का
कोई बात थी
जो अब तक याद
कागज़ी नाँव
डूबती उतराती
तैरती यादें

(समाप्त)


Monday 25 January 2016

एक हाइकू कविता : सम्बन्ध डिलीट

एक कविता पिरामिड़ी श्रंखला के रूप में : तू हरजाई

परिचय कविता से
पिरामिड़ी कविता …. कविता की यह  एक नयी विधा है.. इसमें पहिली लाइन एक अक्षर …..दूसरी लाइन दो अक्षर
तीसरी लाइन तीन अक्षर  .. इस प्रकार करते करते.. सातवी लाइन में सात अक्षर  के साथ में कविता समाप्त होती है
.. यानि कि सात लाइन का एक पिरामिड….. अब कभी कभी पिरामिड की श्रंखला का भी चलन चल गया है……
जैसे आप इस कविता में देखेंगे

कविता :   तू   हरजाई ..

मैं
हुई
अकेली
बेसहारा
तूने किया जो
किनारा बेदर्दी
तड़पा मेरा मन



पिया
सुनना
मेरी चीख
जो निकली है
मेरे   दुखी  मन
घायल आत्मा से


तू
तो न
था ऐसा
बेरहम
तोड़ा प्यार
मेरा पूरा जहाँ
लूट गया बेदर्दी


मैं
जियूँ
या मरुँ
तुझे क्या
तूने तो लूटा
मेरा तन मन
ओ बेदर्दी बलम


मैं
तुझे
यूँ याद
करती हूँ
और रोती हूँ
जैसे उजड़ा हो
मन का   उपवन


तू
वहाँ
खुश है
सँग उस
सौतन के ही
दिल तोड़ कर
कैसी पीर दी मुझे


मैं
तुझे
न कोस
सकती हूँ
न सराप ही
तू लगे प्यारा
आज भी बलम जी


मैं
क्या
करूँ जो
पाऊँ तुम्हें
दोबारा फिर
ओ मेरे बलम
बोल  न हरजाई


मैं
न तो
मरती
और न ही
जीती हूँ यहाँ
जख्मी जिगर से
जार जार रोती हूँ


मैं हूँ तेरी अभागी….

मित्र  का कमेंट …


ब॒हुत मजेदार है तुम्हारी हरजाई


(समाप्त)

Wednesday 20 January 2016

कविता :" मैं और तुम "

मैं
तो था
नादान
अनजान
पर तुम तो
सब जानते थे
खतरे  डगर के


किया 
सचेत 
न बताया
और डुबाई
मेरी किश्ती भी
क्यों  बैर निभाई

मैं
डूबा
गम में
अफ़सोस
पर तुझको
शर्म नही आयी
कैसा दोस्त है तू

हाँ
अब
बताओ
क्या   यह
कविता तुम्हें
पसंद भी आई
तो हाँ कहो न भाई

(समाप्त)