बारिश हो रही है और पिया गये बिदेस...तड़पती विरहिणी..इसी विषय पर पेश है..
"बैरी -बरसात "
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बदरा घिरे
बरसे नयन भी
पिया न आये
रिमझिम है
बिजुरिया कड़के
मन धड़के
पिया बिदेस
मन हुवा व्याकुल
बैरिन रात
क्या करूँ मैं
किधर जाऊँ अब
अधीर मन
विरही मन
सुनता है न कुछ
पिया मिला दे
बरसे पानी
नैना बरसें मेरे
याद सताये
कटे न रात
घेरा बेचैनियों ने
पिया घर आ
(समाप्त)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
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