Monday 18 July 2016

हायकू श्रृंखला "चाँद "

मेरी  ताज़ी  रचना "चाँद" खास आपके लिए ..विधा है..हायकू श्रंखला

आज कुछ चाँद पर...

आज की खास पेशकश ..
आपकी खातिर..

"चाँद"
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चाँद है गोल
रोटी भी होती गोल
बढ़ाये  भूँख

चाँद  मुखड़ा
बूटा तेरा बदन
ख़ुदा बचाये

तुम   हंसी हो
चाँद सी हो बेदाग़
इश्क की   आग़

माना हुस्न है
आपका   लाजवाब
चाँद  तो  नहीं

हैं दो दो चाँद
दोनों बापर्दा ..बुत
ऐ  मेरे ख़ुदा

(समाप्त)

अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव

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