ऊपर ख़ुदा की मौजूदगी के एहसास के बावजूद भी आदमी अपनी चालाकियों और गलत हरकतों से बाज़ नहीं आता और गल्ती पर गल्ती करता है...
"ओ मेरे ख़ुदा"
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ऊपर ख़ुदा
नीचे उसका नूर
मरा ज़मीर
उसके बन्दे
होशियार हो गये
बिके ईमान
मुझे न पूँछ
ज़मीर में अपने
टटोल उसे
बिकता सब
खरीदने वाला हो
ये है बाज़ार
हैं होशियार
सब कोई मगर
वोह लापता
(समाप्त)
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