Monday 18 July 2016

आज के हालात बयां करते "दोहे"

आपके लिये बिलकुल ताज़े "दोहे" जिस विधा में मैंने आज ही से प्रारंभ किया है  ..पोस्ट कर रहा हूँ ...

आज के हालात बयाँ करते
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कुछ "दोहे"
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आपको नज़र....
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जो बिना स्वार्थ करते है जन सेवा के काम

जनता भी लेती सदा उनका आदर से नाम
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ऐसे सज्जन अब घट रहे बढ़ रहे स्वार्थी  लोग

तिकड़म  और जुगाड़ से जीते  अब  ऐसे लोग
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जीवन जीना हुवा कठिन बढ़ गये सबके   दाम

सज्जन और सीधे जनों का   जीना हुवा हराम
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फीस   लाखों में हुयी   पगार   हज़ारो पर ही टिकी

कैसे पढ़ेगा ललुआ मेडिकल कालेज आई आई टी
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भ्रष्ठाचार का देखो फुफकार रहा है सर्प

सबको ये लपेट रहा    बचा न कोई  दर्प
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बचवा पूंछे बाप से क्या थे हमारे पाप

जो तुम कंगले      बन गए हमारे  बाप
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औकात न   थी पढ़ाने की    जीवन होता  है अस्त

एडमिशन  बबुवा की कराने में     हुवे हौसले पस्त
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बीबी कहती ईमानदारी और चरित्र का डालो आप  अचार

बच्चे को भी न  ढंग  से  पढ़ा सके    कहिये क्या है विचार
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अफसर आप बड़े हो पर     भर न पाते हो फीस

उन भाईसाहब को    देखिये कैसी उनकी खीस
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बच्चा पढता ठाठ से   बीबी  शौपिंग  को जाय

उनके घर कुछ न कमी    सब संभव  हो  जाय
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ऐसा    क्या    कमाल     करते    ऐसे  लोग

जीना      जीते   चैन से     मजे  करते  लोग
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करे    यदि  भ्रष्टाचार   तो   सब    संभव हो जाये

पकड़ गलती से  यदि गये      ले  दे  के छूट  जाये
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भ्रष्टाचार    का   तो भाई बज रहा है डंका आज

जिसने    इसकी शरण ली    उसका चलता राज
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ईमानदारी     और   चरित्र आज  बैठ किनारे  रोते हैं

उनको धारण करनेवाले भी कष्ट का  जीवन जीते है
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यही सच्चाई है दुनिया की ललुआ तू भी कुछ सीख

मुझसे तो   कुछ भी  न हुआ      ले   न पाया सीख
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ईमानदारी    और    सच्चाई    नंगी आज जड़ायें

बेईमानी     और   लुच्चई  आज तो मौज  उड़ायें
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(समाप्त)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव

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