आपके लिये बिलकुल ताज़े "दोहे" जिस विधा में मैंने आज ही से प्रारंभ किया है ..पोस्ट कर रहा हूँ ...
आज के हालात बयाँ करते
********************
कुछ "दोहे"
*********
आपको नज़र....
*********
जो बिना स्वार्थ करते है जन सेवा के काम
जनता भी लेती सदा उनका आदर से नाम
********************
ऐसे सज्जन अब घट रहे बढ़ रहे स्वार्थी लोग
तिकड़म और जुगाड़ से जीते अब ऐसे लोग
******************
जीवन जीना हुवा कठिन बढ़ गये सबके दाम
सज्जन और सीधे जनों का जीना हुवा हराम
********************
फीस लाखों में हुयी पगार हज़ारो पर ही टिकी
कैसे पढ़ेगा ललुआ मेडिकल कालेज आई आई टी
********************
भ्रष्ठाचार का देखो फुफकार रहा है सर्प
सबको ये लपेट रहा बचा न कोई दर्प
********************
बचवा पूंछे बाप से क्या थे हमारे पाप
जो तुम कंगले बन गए हमारे बाप
*******************
औकात न थी पढ़ाने की जीवन होता है अस्त
एडमिशन बबुवा की कराने में हुवे हौसले पस्त
********************
बीबी कहती ईमानदारी और चरित्र का डालो आप अचार
बच्चे को भी न ढंग से पढ़ा सके कहिये क्या है विचार
*******************
अफसर आप बड़े हो पर भर न पाते हो फीस
उन भाईसाहब को देखिये कैसी उनकी खीस
********************
बच्चा पढता ठाठ से बीबी शौपिंग को जाय
उनके घर कुछ न कमी सब संभव हो जाय
*****************
ऐसा क्या कमाल करते ऐसे लोग
जीना जीते चैन से मजे करते लोग
*****************
करे यदि भ्रष्टाचार तो सब संभव हो जाये
पकड़ गलती से यदि गये ले दे के छूट जाये
*******************
भ्रष्टाचार का तो भाई बज रहा है डंका आज
जिसने इसकी शरण ली उसका चलता राज
*******************
ईमानदारी और चरित्र आज बैठ किनारे रोते हैं
उनको धारण करनेवाले भी कष्ट का जीवन जीते है
*******************
यही सच्चाई है दुनिया की ललुआ तू भी कुछ सीख
मुझसे तो कुछ भी न हुआ ले न पाया सीख
*********************
ईमानदारी और सच्चाई नंगी आज जड़ायें
बेईमानी और लुच्चई आज तो मौज उड़ायें
********************
(समाप्त)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
No comments:
Post a Comment