Monday 25 July 2016

ग़ज़ल :मेरे यार ...


गुज़रा वक्त  नहीं हूँ जो लौट के न  आउँगा

मै तो तेरा नसीब हूँ तेरे  साथ साथ जाऊँगा

तू दिल से मुझे चाहे या   न चाहे मेरे दोस्त

तेरे   दिमाग में बस मै   हि    मैं   छाऊंगा

तू   सोंचता है  कि  पीछा छुड़ा  लेगा अपना

दूसरी   दुनिया तक  तेरे साथ साथ आउँगा


मंज़र बहुत दुनिया में    देखें हैं हमने साथ

और  भी तमाम अभी तुझको दिखलाऊंगा


(समाप्त )

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